Sunday, 3 July 2011


आओ यादों के फूल सजा ले हम,
कभी तुम याद आओ हमें कभी याद तुम्हे आए हम,

दिल की चौखट पर घावों ने किए हैं बसेरे,
कभी सहलाओं तुम कभी मरहम लगाए हम,

यूँ न मिलना हम से जैसे मिलते हों किसी अजनबी से,
कभी लगाना गले हमको कभी पहनाना हार बाहों के,

मेरे दिल पर आज भी हैं यादें उन मुलाकातों की,
कभी आना तेरा दहलीज पर मेरी कभी परदों से,

सनम न कटे अब इन्जेज़ार की यह घडियां,
यादों के फूलों से कैसे ज़िन्दगी गुजारे हम

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